बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ सन् 1980 में आई थी. फिल्म में जो सवाल उठाया गया था, वह 2024 के जमाने में उतना ही ज्वलंत है. यानी समय ने चार दशक से ज्यादा की लंबी छलांग लगा ली, लेकिन सोच और सवाल पुरानी जगह जमे हैं, महिलाएं असुरक्षित कब तक? दूसरा कि अगर रेप का सबूत नहीं होगा तो दोषी को सजा कैसे मिलेगी? क्योंकि कानून सबूत मांगता है. यही वजह थी कि दिल्ली निर्भया केस के बाद रेप और यौन उत्पीड़न जैसे अपराध के दायरे को बढ़ाया गया लेकिन नतीजा क्या निकला? 11 साल बाद फिर कोलकाता में निर्भया कांड हो गया.
इंसाफ का तराजू’ फिल्म में रेप की शिकार भारती सक्सेना के किरदार में ज़ीनत अमान कोर्ट में पूछती है- “आज मैं इस देश के कानून से सिर्फ एक सवाल पूछना चाहती हूं. अगर किसी सच का कोई सबूत नहीं, कोई गवाह नहीं, तो क्या इसका ये मतलब होगा कि वो सच नहीं? और आपका न्याय उसे झूठ मानकर सजा देगा?” भारती ये सवाल इसलिए करती है क्योंकि देश के कोने-कोने में हर रोज रेप के जो आंकड़े दर्ज होते हैं उनमें से ज्यादातर के सबूत नहीं होते और आरोपी को महज हिरासत में पूछताछ करके छोड़ दिया जाता है, सजा उसी को मुकर्रर होती है, जिस केस को हाइप मिलती है. तो सवाल अहम है रेप की वारदातें रुकेंगी कैसे?


