कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी नए सिरे से जान फूंकने में लगे हैं। जिलाध्यक्षों को पावर देने का प्लान तैयार किया है, लेकिन कांग्रेस के पास देश के 150 जिलों में अध्यक्ष ही नहीं हैं।
10 साल में लोकसभा और विधानसभा के 80 से ज्यादा चुनाव हारने के बाद ग्रैंड ओल्ड पार्टी एक और नया प्रयोग करने जा रही है। खासकर राहुल गांधी और उनकी टीम ने अपने जिलाध्यक्षों को पावरफुल बनाने का प्लान तैयार किया है।
कांग्रेस के इस ने प्लान के तहत तहत जिलाध्यक्षों को टिकट वितरण में तवज्जो दी जाएगी। कांग्रेस मुख्यालय में 2 दिन पहले हुई एक बैठक में राहुल ने कहा कि जब तक जिलाध्यक्ष मजबूत नहीं होंगे, तब तक कांग्रेस का उत्थान नहीं हो सकता है। जिलाध्यक्षों को राहुल शक्ति देने के पक्ष में है, कांग्रेस संगठन में उनकी स्थिति काफी खराब है। देश के करीब 150 जिले में वर्तमान में कांग्रेस के पास कोई अध्यक्ष नहीं है। इनमें महाराष्ट्र, झारखंड और बंगाल के साथ-साथ हरियाणा और राजधानी दिल्ली के जिले प्रमुख रूप से शामिल है।
हरियाणा में 10 साल से नहीं हैं जिलाध्यक्ष
हरियाणा को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। 2004 से 2014 तक यहां कांग्रेस की सरकार रही है, लेकिन हरियाणा में सालों से कांग्रेस के पास जिलाध्यक्ष नहीं हैं। हरियाणा में कुल 22 जिले हैं। कांग्रेस के संगठन में इन 22 जिलों को 25 में विभाजित किया गया है, लेकिन पार्टी ने अब तक एक भी जिले में अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं की है। 2024 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के भीतर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की सुगबुगाहट तेज थी, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। हरियाणा में कांग्रेस हार के बाद से प्रदेश अध्यक्ष और सीएलपी नेता तक नियुक्त नहीं कर पाई है.
बंगाल में 23 के 23 जिले नेता विहीन
बंगाल में सभी जिले खाली बंगाल में 23 जिले हैं। कांग्रेस संगठन में इन जिलों को 30 कैटेगरी में बांटा गया है। पार्टी एक वक्त बंगाल में मुख्य विपक्षी की भूमिका में रही है, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद से यहां कांग्रेस की स्थिति काफी खराब है। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को हटाकर शुभांकर सरकार को बंगाल की जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन 6 महीना बीत जाने के बाद भी सरकार अपनी नई टीम नहीं बना पाए हैं।
महाराष्ट्र में बदले गए प्रदेशाध्यक्ष फिर नहीं मिले जिलों को नेता
2024 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने नाना पटोले को प्रदेश अध्यक्ष के पद से फरवरी में हटाकर हर्षवर्धन सपकाल को जिम्मेदारी सौंपी। सपकाल अभी अपनी टीम का तानाबाना बुनने में लगे हुए हैं। यहां भी पार्टी नेतृत्व की हरी झंडी के बाद नई टीम गठित होगी। महाराष्ट्र में प्रशासनिक तौर पर 36 जिले हैं, कांग्रेस ने इन्हें संगठन स्तर पर 45 में विभाजित कर रखा है।
दिल्ली में तो प्रदेशाध्यक्ष ही नहीं है
कांग्रेस मुख्यालय दिल्ली में है और बड़े नेता भी यहीं बैठते हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली में भी सालों से कांग्रेस के पास जिलाध्यक्ष नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 7 जिले हैं। जिलाध्यक्ष तो दूर की बात कांग्रेस के पास राष्ट्रीय राजधानी में प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं है। दिल्ली में लोकसभा की 7 और विधानसभा की 70 सीटें हैं। कांग्रेस पिछले 3 चुनाव से यहां जीरो पर सिमट जा रही है।
सत्ता के बावजूद संगठन के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस
झारखंड में कांग्रेस गठबंधन के साथ सरकार में है, लेकिन इसके बावजूद यहां पर लंबे वक्त से जिलाध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बदले थे, जिसके बाद सभी जिले में अध्यक्षों के बदलाव की भी बात चली थी, लेकिन फाइनल ऐलान नहीं हो पाया। आदिवासी बहुल झारखंड में 24 जिले हैं। यहां अध्यक्षों की नियुक्ति करना पार्टी के लिए आसान काम नहीं है।
ओडिशा में 30 साल से सत्ता से बाहर है कांग्रेस
ओडिशा का पूरा संगठन 2024 चुनाव में हार के बाद भंग कर दिया था। कुछ महीने पहले कांग्रेस ने यहां भक्तचरण दास को अध्यक्ष बनाकर भेजा है। लेकिन दास अब तक अपनी टीम नहीं बना पाए हैं। ओडिशा में प्रशासनिक तौर पर 30 जिले हैं। कांग्रेस के संगठन के लिहाज से इन जिलों को 40 डिस्ट्रिक्ट में विभाजित किया गया है, लेकिन इन जिलों को अभी तक अपना नेता नहीं मिल पाया है। ओडिशा में 30 साल से ज्यादा समय से कांग्रेस सत्ता में नहीं है।