✍️ संपादकीय लेख:
अमिताभ बच्चन का एक नया विज्ञापन इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। कभी वे लोगों को सोना खरीदने और भविष्य में निवेश बढ़ाने की प्रेरणा देते थे — वह दौर था जब अर्थव्यवस्था में उम्मीद थी, जनता के पास क्रय शक्ति थी, और बाजार में भरोसा था। लेकिन अब वही अमिताभ बच्चन जनता से कह रहे हैं — “अपना सोना गिरवी रखिए, लोन पाइए।”
यह बदलाव केवल विज्ञापन की रणनीति नहीं है, बल्कि उस आर्थिक सच्चाई का आईना है जिसे आज देश झेल रहा है।
महंगाई अपने चरम पर है, रोजगार घट रहे हैं, किसानों की फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा, और मध्यम वर्ग अपनी बचत को बचाने की जद्दोजहद में है। भाजपा सरकार के “अमृत काल” के वादों के बीच आम आदमी के गहने गिरवी रखने की मजबूरी किसी कड़वी सच्चाई से कम नहीं।
कांग्रेस शासन के दौरान बाजार में स्थिरता और निवेश का माहौल था — लोग सोना खरीदकर भविष्य सुरक्षित मानते थे। लेकिन भाजपा के “विकास मॉडल” में जनता का भरोसा टूटा है।
अब जनता निवेश नहीं करती, ज़रूरत पूरी करने के लिए सोना बेचती या गिरवी रखती है।
सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखा सवाल उठाया है —
> “जब देश तरक्की कर रहा है, तो लोग अपने गहने क्यों बेच रहे हैं?”
भाजपा की आर्थिक नीतियों ने जहां उद्योगपतियों की झोली भरी है, वहीं आम नागरिक की जेब खाली हुई है। विज्ञापन सिर्फ प्रचार का साधन नहीं, देश की मनोदशा का प्रतिबिंब होता है।
और अगर आज अमिताभ बच्चन जैसे सितारे भी सोना गिरवी रखने का संदेश दे रहे हैं, तो यह संकेत है कि देश की अर्थव्यवस्था के चमकते चेहरे के पीछे गहराता अंधकार छिपा हुआ है।
अब वक्त है सत्ता से सवाल पूछने का —
क्या “अमृत काल” में जनता अपने गहने गिरवी रखेगी, या सरकार अपने अहंकार?


