भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी हाल ही में अपने मंडल अध्यक्षों की घोषणा की है, लेकिन संगठन में अपेक्षित सक्रियता अभी तक दिखाई नहीं दे रही है। कोरबा जिले में नियुक्त हुए मंडल अध्यक्ष अब तक किसी भी जनहित के मुद्दे पर सड़कों पर नहीं उतरे हैं और न ही जनता की समस्याओं को लेकर कोई ठोस पहल की गई है।
स्थानीय स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ता अब खुले तौर पर यह सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर नए मंडल अध्यक्षों की भूमिका क्या है, जब जनता की समस्याओं पर वे मौन हैं। कई जगहों पर कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि “नेतृत्व बदलने से संगठन नहीं चलता, जमीनी स्तर पर सक्रियता जरूरी है।”
एक वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
> “भाजपा ने मंडल स्तर पर जनता के बीच पकड़ मजबूत की है। कांग्रेस ने भी उसी ढांचे की नकल की है, लेकिन हमारे मंडल अध्यक्षों की सक्रियता बहुत कमजोर है। जब तक वे जनता के बीच नहीं जाएंगे, तब तक संगठन मज़बूत नहीं हो पाएगा।”
वहीं एक युवा कांग्रेस नेता ने कहा,
> “जनहित के मुद्दे जैसे बेरोजगारी, बिजली समस्या, महंगाई और स्थानीय विकास कार्यों को लेकर मंडल स्तर पर संघर्ष की जरूरत है। पार्टी के नेताओं को मैदान में उतरना चाहिए।”
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस ने संगठनात्मक ढांचा तो तैयार कर लिया है, लेकिन उसमें जोश और जनसंपर्क की कमी साफ झलक रही है। अगर यही स्थिति बनी रही तो आगामी स्थानीय चुनावों में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
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