कोरबा। नगर निगम में भाजपा की सरकार बैठते ही रोज़ी-रोटी कमाने वालों पर सबसे ज़्यादा मार पड़ी है। सब्ज़ी बेचने वाले हों, फल बेचने वाले हों या मछली बेचकर परिवार पालने वाले—सभी को “बैजा कब्ज़ा” के नाम पर बार-बार हटाया जा रहा है।
आज तो हद तब हो गई जब कोरबा पुराने बस स्टैंड थाना के सामने, आसपास के गांवों से आई गरीब महिलाएं जो सब्ज़ी बेचकर अपना घर चलाती हैं, उन्हें भी निगम ने बेरहमी से हटा दिया। इन महिलाओं के पास ना तो कोई स्थायी दुकान है और ना ही कोई विकल्प, फिर भी उन्हें सड़क से खदेड़ दिया गया।
ट्रैफिक व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन का कर्तव्य है, इसमें दो राय नहीं। लेकिन सवाल यह है कि क्या गरीबों को सड़क से खदेड़ना ही समाधान है? आखिर इन मेहनतकशों को स्थायी जगह देना भी तो नगर निगम की ही जिम्मेदारी है।
भाजपा राज में निगम की यह कार्रवाई गरीबों की थाली से निवाला छीनने जैसी है। रोज़ काम कर खाने वाले लोगों को उजाड़ना व्यवस्था सुधार नहीं, बल्कि गरीबों का गला घोंटने जैसा कदम है।
👉 जनता सवाल पूछ रही है—क्या निगम सिर्फ़ हटाने के लिए है, बसाने के लिए नहीं?


