कोरबा।
नगर निगम के गलियारों में पिछले कई वर्षों से गूंज रहा नाम—पूर्व पार्षद अग्रवाल जी—आजकल फिर सुर्खियों में है। वजह वही पुरानी है: “बहुत चर्चित होने के बावजूद भाजपा संगठन में कोई पद नहीं।”
चुनावी टिकट के वक्त पार्टी ने उन्हें इतना नाप-तोल कर देखा कि तराजू टूट गया, पर टिकट कहीं और चला गया। तब से लेकर अब तक अग्रवाल जी हर मीटिंग में मौजूद, हर चर्चा में शामिल, हर कॉफी हाउस की बहस का हिस्सा, लेकिन जब सवाल आता है “पद कौन सा है?”, तो जवाब मिलता है—“बस… चर्चित हैं।”
संगठन के लोग भी मानते हैं कि “अग्रवाल जी बिना पद के भी पूरे निगम में वैसे ही चमकते हैं, जैसे दीवाली में बिना बिजली के झालर।”
कहा तो यह भी जाता है कि जिस कुर्सी पर वे बैठते हैं, वह कुर्सी खुद सोच में पड़ जाती है कि आखिर मैं विपक्षी की हूँ या सत्तापक्ष की।
नगर निगम में फाइलें घूम-घूम कर थक जाती हैं, पर अग्रवाल जी का नाम घूमते-घूमते और चमकता है। पार्टी के कार्यकर्ता अक्सर पूछते हैं—“भाईसाब, आपको टिकट क्यों नहीं मिला?”
वे मुस्कुराकर जवाब देते हैं—“पार्टी को लगा मैं बहुत चर्चित हूँ, कहीं जीत ही न जाऊँ।”
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि अग्रवाल जी की स्थिति वैसी है जैसे शादी में बाराती तो हों, पर हाथ में लड्डू न आए।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा संगठन के पास इस समय पदों की लंबी लिस्ट है, लेकिन अग्रवाल जी का नाम आते ही सब कहते हैं—“रुको, इनके लिए कुछ खास सोचेंगे।” वह “खास” दिन कब आएगा, यह कोई नहीं जानता।
इधर निगम के लोग मानते हैं कि अगर चर्चा से पद मिलते, तो अग्रवाल जी अब तक मुख्यमंत्री तक बन चुके होते।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनके चर्चित होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि वे हर जगह सबसे पहले पहुँचते हैं—चाहे मीटिंग हो, उद्घाटन हो या फिर सिर्फ चाय-समिति की चर्चा।
जनता भी समझ नहीं पा रही कि बिना पद के भी यह नाम क्यों इतना गूंजता है। मोहल्लों में लोग कहते हैं—“हमारे यहाँ गली की लाइट खराब हो तो कॉल हम पहले निगम को करते हैं या अग्रवाल जी को, यह तय करना मुश्किल हो जाता है।”
कुल मिलाकर, स्थिति यह है कि अग्रवाल जी राजनीति के उस ‘क्लास’ के छात्र हो गए हैं जिन्हें अटेंडेंस और चर्चा में तो फुल नंबर मिलते हैं, पर प्रमोशन की कॉपी हमेशा रुक जाती है।
फिलहाल संगठन के पदाधिकारियों ने एकमत होकर कहा है—“अग्रवाल जी का नाम इतना चर्चित है कि पद देने से पहले हमें अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करना पड़ेगा, ताकि लोग भीड़ न कर दें।”
कोरबा की जनता इंतज़ार में है कि कभी तो वह दिन आएगा, जब खबर बनेगी—“अग्रवाल जी को आखिरकार पद मिला।”
तब तक खबर यही है कि “टिकट नहीं मिला, पद नहीं मिला, पर चर्चा आज भी नंबर वन।


