भूपेश बघेल के निरंकुश नेतृत्व और कथित भ्रष्ट आचरण के कारण छत्तीसगढ़ कांग्रेस पर काले बादल मंडरा रहे हैं। बघेल अपने भ्रष्टाचार से बचने के लिए कांग्रेस की बची-खुची साख को दांव पर लगा रहे हैं, जबकि स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं का उन्हें दिल से समर्थन नहीं मिल रहा है।

आंतरिक कलह और उनके बेटे चैतन्य की ईडी द्वारा गिरफ्तारी, कांग्रेस के लिए एक गंभीर संकट बन गई है — जिससे न केवल राज्य इकाई, बल्कि गांधी परिवार समेत केंद्रीय नेतृत्व भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

अब छत्तीसगढ़ कांग्रेस और गांधी परिवार अनिच्छा से आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं। शनिवार को चरणदास महंत की आवाज़ में आत्मविश्वास की कमी थी, जब वह कांग्रेस की एकता को लेकर पत्रकारों को भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे थे।

अगर पार्टी में इतनी एकता है तो 12 बजे शुरू हुई बैठक ढाई घंटे तक क्यों चली? मज़े की बात यह है कि महंत ने बघेल की तरह केवल एक औद्योगिक घराने को घसीटने के बजाय सभी बड़े निवेशकों का नाम लिया — यह साफ संकेत है कि वह बघेल की कठपुतली नहीं हैं।

यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी हालिया रायपुर दौरे में नेताओं से भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की अपील की — यह अपील पार्टी की बिखरी हुई स्थिति को उजागर करती है।

महंत को अब यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह पार्टी के उन नेताओं को साथ लेकर चलें, जो बघेल को हटाना चाहते हैं। अब शायद उन्हें भी यह समझ में आने लगा है कि सिर्फ भूपेश बघेल का परिवार ही छत्तीसगढ़ नहीं है — जैसा वह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

सत्ता में साझेदारी से बघेल का इनकार और वरिष्ठ नेताओं को व्यवस्थित रूप से किनारे लगाने से पार्टी का एक बड़ा वर्ग खुद को अलग-थलग महसूस कर रहा है। स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व के साथ उनके प्रसिद्ध मतभेद और गहराते जा रहे हैं।

इस असंतोष की जड़ में टीएस सिंह देव के साथ हुआ व्यवहार भी है — जो अपनी विनम्रता और जन-केंद्रित दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाते हैं।

कांग्रेस के भीतर कई नेताओं का मानना है कि यदि पार्टी टीएस सिंहदेव के नेतृत्व में जमीनी मुद्दों पर फोकस करती, तो वह मतदाताओं से दोबारा जुड़ सकती थी — बजाय इसके कि बघेल गुट की छवि सँवारने और विवादों को संभालने में ही उलझी रहती।

 

कांग्रेस आलाकमान हाल के चुनावी झटकों — जिसमें विधानसभा, लोकसभा और नगरीय निकाय चुनावों में खराब प्रदर्शन शामिल है— से जूझ रहा है। अब उसे तुरंत जन-केंद्रित मुद्दों पर ध्यान देना होगा।

खुद को जांच से बचाने के लिए अडानी को बार-बार निशाना बनाने के बघेल के जुनून ने जनता की गंभीर चिंताओं से ध्यान भटका दिया है।

हालांकि कई मतदाता कथित घोटालों की जटिलताओं को नहीं समझ पाते, एक मुद्दा बहुत गहराई से गूंज रहा है: नकली और घटिया शराब का प्रसार।

इस “शराबखोरी” की बदनामी इतनी व्यापक हो गई है कि राज्य में आने वाले पर्यटकों को नियमित रूप से सलाह दी जाती है कि वे अपनी शराब साथ लाएं — जो शासन-प्रशासन पर एक गंभीर धब्बा है।

कांग्रेस के लिए यह समय है कि टीएस सिंह देव के नेतृत्व में पार्टी में नई जान फूंकी जाए। उनके नेतृत्व से पार्टी को जनता के साथ एक प्रामाणिक जुड़ाव स्थापित करने में मदद मिल सकती है।

मतदाता रोज़गार के अवसर और ठोस विकास चाहते हैं — न कि वन संरक्षण पर केवल बयानबाज़ी, जबकि कोल इंडिया की सहायक और निजी कंपनियाँ वर्षों से वनों की कटाई कर रही हैं।

विडंबना यह है कि अडानी के पास छत्तीसगढ़ में कोई कोयला खदान नहीं है, वह छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र की खदानों का संचालन कर रहा है — और इन खदानों को मंज़ूरी खुद बघेल सरकार ने दी थी।

छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन से कांग्रेस एक एकजुट पार्टी बन सकती है — न कि एक ऐसे नेता की बंधक, जो भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुका है और जनता की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देने के बजाय भाजपा पर हमला करके अपनी जवाबदेही से बचता है।

कांग्रेस को अब अपनी विश्वसनीयता बहाल करनी होगी — और बघेल परिवार के हितों से ऊपर शासन को प्राथमिकता देनी होगी। क्योंकि बहुत जल्द यह परिवार अपनी जमा संपत्ति बचाने के लिए कानूनी लड़ाइयों में फंसता दिख रहा है।

अब सवाल यह है — क्या कांग्रेस इस मौके का फायदा उठाकर सही दिशा में जाएगी, या फिर उसी आंतरिक आग में जलती रहेगी जिसे उसने वर्षों से नज़रअंदाज़ किया है?

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