सियासी गलियारों में इन दिनों हवा कुछ ज़्यादा तेज़ चल रही है। चर्चा यह कि दिसंबर आते-आते मंत्रिमंडल में “सर्जरी” होने वाली है—किसी के विभाग की चीर-फाड़, किसी की कुर्सी की छुट्टी, तो किसी को नई चमकदार जिम्मेदारी।
अब ये सर्जरी बगैर बेहोशी के होगी या सीधे ऑपरेशन थिएटर में, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं!
मज़ेदार यह कि इस तरह की अफ़वाहों की न कोई पुष्टि करता है, न कोई खंडन। लेकिन खबरें ऐसे फैलती हैं जैसे किसी ने व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से स्पेशल डिग्री ले रखी हो।
इसी वजह से बाज़ार में हर तीसरा आदमी सिर्फ एक ही सवाल पूछ रहा है—
“कौन-कौन बाहर और कौन अंदर?”
हालांकि एक तर्क यह भी खड़ा हो रहा है—
जब दो महीने पहले सितंबर में ही तीन नए मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी,
तो उसी समय मंत्रिमंडल का बड़ा पुनर्गठन क्यों नहीं हुआ?
क्या तब डॉक्टर छुट्टी पर थे, या सियासी ऑपरेशन थियेटर में बिजली गुल थी?
खुला सच यही है—हर कोई नाम जानना चाहता है,
लेकिन लिस्ट किसी के पास नहीं।
और तब तक यह उड़ी हुई ‘राजनीतिक हवा’
—बड़ी तेजी से पंख फैलाए घूम रही है।


